पर्यावरण के महान संरक्षक और सम्मानक थे ‘बाबा नानक’
जनमुख : धर्म-कर्म। गुरूनानक देव जी ने केवल भारत देश ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में अपने ज्ञान प्रकाश द्वारा नये युग धर्म की स्थापना की तथा अंधकार में भटकते मानव को मार्गदर्शन दिया। गुरूनानक देव जी ने नाम जपो, कृत करो, बंड छको की शिक्षा दी। ‘नानक नाम चढ़दी कला तेरे भाणे सर्वत्र का भला’ का संदेश दिया तथा विश्व बन्धुत्व की भावना को स्थापित किया। यहीं कारण है कि गुरूनानक देव जी सिर्फ सिख गुरूओं के रूप में ही नहीं बल्कि जगत् गुरू के रूप में देखे जाते हैं। गुरूनानक देव मानव कल्याण तक ही सीमित नहीं रहे, वे सम्पूर्ण पर्यावरण के प्रति भी संवेदनशील रहे। आज इंसान के हाथ में बेवस और बंधक सी बनी प्रकृति में कभी बाबा नानक ने उस परमात्मा का दीदार किया था। कुदरत के कण-कण में ब्रह्म की सत्ता के अनुभव से इतने गद्गद् हो उ’े थे कि बाबा नानक स्वयम् को उस अकाल पुरूष पर बलिहार कर दिया। कुदरत की अपरम्पार महिमा की स्तुति में उनके कं’ से निकले थे ये शब्द- बलिहारी कुदरत वसिया, तेरा अंत न जाई लखिया। आज जब पर्यावरण प्रदूषण विश्व की समस्या बनी हुई है, अब जब पर्यावरण की महत्ता सबको समझ आने लगी है, वहीं आज से करीब साढ़े पाँच सौ वर्ष पूर्व गुरूनानक देव जी ने पर्यावरण के संरक्षण का संदेश ही नहीं दिया, पर्यावरण को सर्वोच्च स्थान देकर सम्मानित किया और इसको अध्यात्म से जोड़ा। भारतीय जीवन में अध्यात्म का महत्वपूर्ण स्थान है, अध्यात्म में हमारी जीवन शैली, संस्कृति और धर्म जुड़ा हुआ है। अध्यात्म ही हमारे जीवन का परम और चरम लक्ष्य है। यहीं कारण है कि हमारे ऋषि- महर्षि अध्यात्म के जरिये लोगों को संदेश देते आये हैं। इसी परम्परा में गुरूनानक देव अध्यात्म के जरिये लोगों को संदेश देते आये हैं। इसी परम्परा में गुरूनानक देव अध्यात्म में प्रकृति की महत्ता इस प्रकार दर्शाते हैं।