मदर टेरेसा ने पूरा जीवन सेवा को किया समर्पित

जनमुख, न्यूज। २६ अगस्त को संत मदर टेरेसा का जन्म हुआ था। मदर टेरेसा का पूरा जीवन संतों की तरह था, वह सभी से प्रेम से मिलती और करुणा भाव उनमें कूट-कूटकर भरा था। उनके अंदर मानव सेवा का जज्बा कमाल का था। उन्होंने मानव सेवा के संकल्प का सफर अकेले ही शुरू किया था। मदर टेरेसा का जीवन संघर्षपूर्ण रहा, लेकिन वह सेवाभाव के जज्बे से आगे बढ़ती रहीं। अल्बानिया में २६ अगस्त १९१० को मदर टेरेसा का जन्म हुआ था। जन्म के अगले दिन उनको ईसाई धर्म की दीक्षा मिली, जिस कारण वह २७ अगस्त को अपना जन्मदिन मनाती थीं। उन पर बचपन से ही मिशिनरी जीवन का अधिक प्रभाव था, वह बंगाल के मिशिनरियों के सेवाकार्यों की कहानियां सुनती थीं, जिस कारण उनके मन में भारत आने का विचार पनपने लगा। मदर टेरेसा का असली नाम एक्नेस था। उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन करने का फैसला किया और वह आयरलैंड के इंस्टीट्यूट ऑफ ब्लेस्ड वर्जिन मेरी चली गईं। जहां से वह अंग्रेजी भाषा सीखकर भारत जाने के सपने को पूरा कर सकें। इसके बाद मदर टेरेसा ने कभी अपने परिवार वालों को नहीं देखा।साल १९२९ में एक्नेस भारत पहुंची और दार्जलिंग में रहने लगीं। इसी दौरान उन्होंने बंगाली सीखी और कॉन्वेंट के पास शिक्षण कार्य शुरू किया। साल १९३१ में एक्नेस ने पहली बार धार्मिक प्रतिज्ञा ली और अपना नाम मदर टेरेसा रख लिया। मदर टेरेसा ने कलकत्ता में करीब २० साल तक लोरेट कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाया। लेकिन मदर टेरेसा का मन कलकत्ता में गरीबी को देखकर काफी द्रवित होता था।साल १९४३ में आए बंगाल अकाल में और फिर १९४६ में साम्प्रदायिक हिंसा ने मदर टेरेसा को अंदर से झझकोर कर रख दिया। इसी दौरान जब वह दार्जलिंग जा रही थीं, तभी उनके अंदर से आवाज आई और उन्हें ऐसा लगा जैसे ईश्वर उनको आदेश दे रहे हैं कि वह गरीबों की सेवा करें। इसके बाद उन्होंने शिक्षण कार्य छोड़कर लोगों की सेवा करने का फैसला लिया।स्कूल छोड़ने के बाद साल १९४८ से मदर टेरेसा ने पूरी तरह से गरीबों के लिए मिशिनरी कार्य शुरू किया। उन्होंने दो साधारण कपास की साड॰ियां लीं, जिनमें नीली पट्टी थी। फिर वह गरीबों की झोपड़ी में जाकर रहने लगीं, लेकिन किसी तरह का सहयोग न मिलने पर उन्होंने खुद को जिंदा रखने के लिए भीख तक मांगी। वहीं लोग उनको संदेह की नजरों से देखते हुए नजरअंदाज कर देते थे। मदर टेरेसा की संकल्पशक्ति के आगे चुनौतियां भी न ठहर सकीं। धीरे-धीरे युवा महिलाएं उनसे जुड़ने लगीं और उनकी मदद से पुअरेस्ट अमंग द पुअर नाम का धार्मिक समुदाय बनाया। मदर टेरेसा बिना किसी भेदभाव के गरीबों की सेवा करने लगीं और लोग उनके कामों में हाथ बंटाने लगे। बता दें कि मदर टेरेसा ने कोढ़ रोगियों के लिए खूब सेवा की। साल १९५० में मदर टेरेसा को वैटिकन से उनके मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्वीकृति मिली। यह धार्मिक सिस्टर्स समूह गरीबों को निस्वार्थ सेवा देने का काम कर रहा था। मदर टेरेसा के निधन के समय मिशनरीज ऑफ चैरिटी १२० से ज्यादा देशों में ४५० ब्रदर्स और पांच हजार सिस्टर्स काम कर रहे थे।

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